लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘क्या? क्यों?’

‘हाँ ।मैं चाहता हूँ कि तुम मुझसे शादी करो।’ मैं हडबड़ाया सा था।

‘अंश तुम जानते हो कि तुम क्या कह रहे हो? ‘

‘क्यों? प्रपोज कर रहा हूँ, शादी के लिए तुमको।’

‘आज प्रपोज कर रहे हो ताकि मैं मना कर दूँ। क्योंकि परसों मेरी सगाई है, हाँ तो मैं कर नहीं सकती।’

‘नहीं प्रीती, सच में! मैं चाहता हूँ कि तुम मुझसे ही शादी करो।’

‘और अचानक ऐसा क्यों चाहने लगे तुम?’

‘तुम्हें चाहने लगा हूँ, शायद।’ मैंने असमंजस में कहा। उसे मेरी आवाज की भावनाओं के मुकाबले लफ्ज ज्यादा साफ सुनायी दिये होंगे लेकिन उसका जवाब फिर भी मेरी उम्मीद से अलग था।

‘अंश, सच मानो अगर तुमने मुझे कुछ दिन पहले ये कहा होता तो मैं बहुत खुश होती लेकिन आज नहीं हो पा रही हूँ। अब मैं कुछ नहीं कर सकती, फँस चुकी हूँ। मेरे लिए ये शादी करना और निभाना भी मुश्किल कर दिया है तुमने, ये सब कह कर।’

‘तो फिर मत करो न ये शादी। क्यों कर रही हो?’

‘अंश तुम क्यों चाहते हो कि मैं तुमसे ही शादी करूँ?’

‘पता नहीं। जब से पता चला कि तुम शादी कर रही हो तबसे अजीब-सा लग रहा था जैसे मेरा अपना कुछ जा रहा है मेरे पास से। कुछ ऐसा जो मेरा ही था और किसी सूरत मे कहीं जा ही नहीं सकता, किसी और का हो ही नहीं सकता। तुम मत करो ये शादी प्लीज!’ मैं ये कहते हुए कुछ परेशान सा हो गया।

‘तुम ये नहीं चाहते कि मैं किसी और से शादी करूँ या ये चाहते हो कि तुमसे करूँ!’

‘दोनों में फर्क क्या है?’

‘है अंश, बस मैं जानना चाहती हूँ।’

‘हाँ मैं... मैं दोनों ही बातें चाहता हूँ।’ मेरी जो समझ आया मैंने कह दिया।

‘तुम मेरे पापा से बात करोगे अभी?’

‘तुम्हारे पापा से?’

‘हाँ और एक बात बता दूँ, वो तुमको बिल्कुल भी पसन्द नहीं करते।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book