ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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मैंने प्रीती के कहने पर उसी वक्त कान्फ्रेन्स कॉल पर उसके पापा से बात की। उनको ये पहले से ही पता था कि प्रीती मेरे लिए पागल है। मैं और प्रीती काफी देर तक उसके पापा को समझाते रहे, मनाते रहे, लेकिन वो नहीं माने। मुझे वैसे भी किसी को मनाना नहीं आता था। मेरे पास देने लायक कोई दलील नहीं थी और जो मैंने दी वो सब उनके सामने बेकार थी। वो मेरे बारे जो सोचते थे वो मेरे लिए किसी की सबसे बुरी सोच थी। एक बदनाम, बेकार, बेहूदा फ्लर्ट! जो कुछ नहीं कर सकता इसलिए मॉडल बन गया। जिसे किसी बात की परवाह नहीं है और भी कई सारी ऐसी बातें जिनका कोई सर पैर नहीं था, जो कभी हुई ही नहीं थी। वो प्रीती की शादी किसी भी नाकारे-निक्कमे से कराने को तैयार थे लेकिन मेरे साथ उनकी एकलौती बेटी की जिन्दगी खराब हो रही थी। उसके पापा के आखिरी शब्द थे कि -
‘अंश पैसा बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं। मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटी एक अच्छे इन्सान के साथ जिये। मुझे एक सुलझा हुआ इन्सान चाहिये और तुम लोगों की जिन्दगी तो मैं जानता हूँ कि कैसी होती है। तुम्हारी जिन्दगी में तो रोज नई लड़कियाँ आती-जाती रहती हैं। एक फ्लर्ट के साथ उसकी शादी करा कर उसकी जिन्दगी नहीं खराब करनी। मैं इस डर में नहीं जीना चाहता कि आज मेरी बेटी का घर टूटता है और कल टूटता है। तुम जहाँ हो वहाँ सिर्फ पैसा और नाम मायने रखता है रिश्तों की कोई कीमत नहीं।’
एक दूसरी दलील उनकी ये थी कि प्रीती की सगाई भी हो चुकी है और अब कुछ सोचना भी फिजूल है।
मैंने कभी ये नहीं सोचा था कि मुझे कोई इस तरह नकार भी कर सकता है। मेरी सोच तो ये थी कि मैं जिसे चाहूँ उसे अपना बना सकता हूँ, जैसे चुनने का हक सिर्फ मुझको ही है। फिर उसी शाम जब मैं संजय को अपना हाल सुना रहा था तो प्रीती की कॉल आयी और उसने मुझे बताया कि उसने ये रिश्ता तोड़ दिया है।
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