ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘तुम्हारे सपनों में खोयी हुई ये भूल गयी थी कि मेरी सब सहेलियों की शादी हो चुकी है लेकिन मैं पता नहीं किसका इन्तजार कर रही थी। कोई तुक ही नहीं था उस प्यार का, जो मैंने आज तक किया। सब कहते थे कि मैं पागल हूँ... अब मुझे भी यकीन हो गया कि हाँ, मैं पागल ही तो थी। क्या कर रही थी मैं और क्यों कर रही थी? मेरे घरवाले मुझे समझाते रहे लेकिन मैं नहीं समझी। सब कुछ जानते हुए भी मैं पता नहीं किस यकीन पर आज तक रुकी थी। पता नहीं क्या था जो मुझे तुम्हें भूलने नहीं देता था। कल तक मैंने अपनी जगह से दुनिया को देखा था अंश, अब मैं दुनिया की जगह से खुद को देख रही हूँ तो पता चला कि मैं सिवाय पागलपन के कुछ नहीं कर रही थी जिसका अन्त एक पछतावे पर होना था।’
उसकी धीमी सी आवाज में ये सुनकर पता नहीं क्यों मुझे भी धक्का लगा। मेरी आवाज भी धीमी पड़ गयी।
‘तो अब तुम सम्हल गयी हो? अब प्यार नहीं करती मुझसे?’
‘यही तो तुम चाहते थे हमेशा से कि मैं तुम्हें भूल जाऊँ... लो भूल गयी! क्यों क्या हुआ?’
‘कुछ नहीं,। बस तुम्हारी शादी की खबर काफी चौंकाने वाली थी।’
‘हो सकता है तो?’
मैं एक पल को चुप हो गया और फिर थोड़ा सहज होते हुए-
‘तो..। सब फिक्स हो गया है ना?’
‘हाँ।’
‘तुम खुश रहोगी इस शादी के बाद?’
‘पता नहीं, मैं कुछ नहीं जानती, लेकिन तुमको इससे क्या फर्क पड़ता है, मैं खुश रहूँ या नहीं।’ प्रीती मेरे मन को बार-बार टटोल रही थी कि मैं उसे कुछ कह दूँ। मैं भी कुछ कहना चाहता था लेकिन शब्द ही नहीं मिल पा रहे थे उस वक्त। बड़ी हिम्मत करके मैंने उसे कहा कि-‘प्रीती तुम... तुम ये शादी मत करो।’
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