ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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संजय के चले जाने के बाद भी मेरे दिमाग में उसकी कही हर बात गूँजती रही। मैं खुद से ही कह रहा था कि जब मैं प्रीती को चाहता ही नहीं तो उसकी शादी से मुझे क्या मतलब? अगर वो मेरे लिए मायने नहीं रखती तो मैं क्यों ये महसूस कर रहा हूँ कि कुछ कीमती मेरे हाथ से जाने वाला है। जैसे कुछ ऐसा खोने को हूँ जो हमेशा से मेरा ही था..... मेरे लिए ही था। जो मेरे सिवा कहीं और जा ही नहीं सकता था। मैं किसी ऐसे खोने वाला हूँ जिसकी आदत है मुझे।
मैं अपने विचारों को बाँधता रहा लेकिन एक सवाल मेरे दिमाग की नसों में दौड़ रहा था- उसने इतनी जल्दी हार कैसे मान ली?
मैंने उसे फोन किया, एक बार.... दो बार..... तीन बार! लेकिन उसने उठाया ही नहीं। वो कई दिनों से मुझसे बात नहीं कर रही थी। मैंने एक वॉइस मेल उसके लिए छोड़ दिया और अगली ही सुबह उसका फोन मेरे पास आया।
उसकी शादी के बारे में बात करने में मुझे थोड़ी झिझक हो रही थी। मैं इन्तजार में था कि वो खुद से बात छेड़े लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। आखिर में घुमा फिराकर मुझे ही उस मुद्दे तक पहुँचना पड़ा।
‘प्रीती, तुम शादी कर रही हो?’
दूसरी तरफ एक दम सन्नाटा हो गया। लाजमी है कि वो हैरान थी।
‘तुमको पता है?’
‘हाँ तुमने बताना जरूरी नहीं समझा लेकिन मुझे पता चल ही गया। तो ये सब सच है?’
‘हाँ, मैं कर रही हूँ।’
‘लेकिन तुम तो कहतीं थीं कि अभी नहीं करनी। अब क्या हुआ?’
उसे जवाब देने में वक्त लगा।
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