ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
वो सोच में पड़ गयी और फिर- ‘इसी वजह से किसी एक के साथ टिक नहीं पाते और इतनी सारी लड़कियाँ पाल ली हैं?’
‘प्रीती, और लोगों के साथ क्या होता है मैं नहीं जानता, हाँ लेकिन मेरे साथ यही हो रहा है। आज की तारीख में मैं किसी से प्यार नहीं करता और न ही अब मुझे प्यार जैसे शब्द पर यकीन रहा। मेरे लिए वहाँ कोई खास नहीं है और बाकी सबके लिए मैं क्या हूँ ये तो वो ही जानें।’
‘अंश तुम लड़कियों से घिरे रहते हो और तुम किसी को लेकर कुछ नहीं सोचते, ये बात कोई मान सकता है क्या?’
‘प्रीती, सागर में गोते लगाने से आपकी प्यास नहीं बुझती वो तुम्हारी प्यास को बढ़ा देता है। मैं ये मानता हूँ कि कोई किसी से प्यार नहीं करता सब खुद से प्यार करते हैं, किसी को चाहते भी हैं, तो अपनी खुशी के लिए।’
‘तो तुम किसी को नहीं चाहते लेकिन उनका क्या जो तुम्हें चाहते हैं?’
‘अगर सब कुछ जानकर भी कोई मुझे चाहता रहे तो मैं उसमें क्या कर सकता हूँ? पता है, आये दिन किसी न किसी का जन्मदिन होता है, विश करना किसी और को चाहिये और कर किसी और को देता हूँ, पार्टी किसी ने दी होती है घर किसी और के चला जाता हूँ।’
‘वाकई में बड़ा कठिन काम है अंश।’ ये उसने किसी सोच में डूब कर कहा, और आखिर तक उसी सोच में रही।
मैंने प्रीती को अपने बारे में वो सब बताया जो वो जानना चाहती थी और वो भी जो वो सुनना तक नहीं चाहती थी। ऐसा बहुत कुछ जो उसे दुःख पहुँचा सकता था, उसके प्यार पर भारी पड़ सकता था। उसने आखिर में जाते-जाते मुझसे बस ये ही कहा कि उसके पास एक तस्वीर थी मेरी जिसके मैंने हजारों टुकड़े कर दिये।
भले ही मैंने उसका दिन खराब कर दिया हो लेकिन उसकी जिन्दगी बचा ली थी। कभी कभी थोड़े से आँसू एक बड़ी वजह का कारण बनते हैं। कभी कभी छोटी सी हार किसी बड़ी कामयाबी का राज बनती है।
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