ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
|
3 पाठकों को प्रिय 347 पाठक हैं |
जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘कौन?’
‘सोनाली राय। बहुत स्पेशल है, इसलिये नहीं कि मैं उसे पसन्द करता हूँ बल्कि वो है ही स्पेशल।’ मैं मुस्कुराने लगा। वही मुस्कुराहट थी जो अक्सर उसे याद करते ही आ जाती थी।
‘तो इनमें से कोई नहीं है जो तुम्हें चाहिये?’
‘हाँ, लेकिन उसका सिर्फ नम्बर ही है मेरे फोन पर! कोई कॉल हिस्ट्री नहीं। कोई पुराना मैसेज पड़ा हो, तो हो।’
‘कौन, यामिनी?’
‘हाँ, मैंने बस उसे ही प्यार किया है। हर किसी में उसे ही ढूँढ़ता हूँ। हर उस लड़की की तरफ खिंच जाता हूँ जो उसकी तरह हो, उसकी हँसी, उसकी आवाज, उसकी आँखें, वगैरह-वगैरह।’
‘तुम्हारे रिश्ते कैसे हैं इन सबसे? सिर्फ मेलजोल है या आगे तक?’
‘मीन्स रिलेशन? हाँ हुए हैं। एक-दो के साथ और अब तक हैं।’ मैंने उसे निराश किया लेकिन उसका निराश होना जरूरी था। उसे अंश की सच्चाई पता होनी चाहिये थी। ‘मैं कुछ दिन किसी लड़की के साथ बिताता हूँ, शुरुआत में लगता है कि ये यामिनी जैसी है या ये लगता है कि इसे मैं प्यार करता हूँ और फिर कुछ महीनों में, गलतफहमी दूर हो जाती है, साथ ही वो लड़की भी। सिम्पल।’
‘सिम्पल?’ उसने खोये से अन्दाज में कहा।
‘प्रीती। एक बात बताऊँ, मैं खुद को फ्लर्ट नहीं मानता, मैं जानता हूँ कि मैं फ्लर्ट नहीं हूँ। मैंने कभी ऐसा कुछ नहीं किया जिसे आप फ्लर्टिंग कह सको। मैंने बस एक ही लड़की को सच में चाहा है अब तक, उसी से रिश्ते बनाने की कोशिश की। बाकी सब तो बस खुद ही मुझसे जुड़ गयीं। अगर आप मुझे फ्लर्ट कहते हो तो मैं कहूँगा कि फ्लर्ट हमेशा वो लोग होते हैं जो कन्फ्यूज होते हैं, जो अपना पहला प्यार भूल नहीं पाते। सच्चा प्यार ढूँढ़ते हैं लेकिन मिलता नहीं। कुछ पर वो यकीन नहीं कर पाते, कुछ उन पर यकीन नहीं करते।’
‘तो फिर ये रिश्ते बनाते रहने का क्या मतलब हुआ अंश?’
‘देखो प्रीती, अब वो जमाने नहीं रहे कि आप का प्यार खो गया तो आप उसके गम में जान दे दो। आज हर इन्सान अपने खोये हुए प्यार को दूसरों में जरूर ढूँढ़ता है, लेकिन हर इन्सान क्योंकि अलग होता है, इसलिए दूसरे इन्सान पर बने रहना मुश्किल हो जाता है, फिर ब्रेक अप, फिर कुछ दिनों की मायूसी और फिर एक नयी ऐन्ट्री। इसे आप जैसे लोग फ्लर्ट का नाम देते हैं।’
|