ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘सच कहा तुमने प्रीती, वो अंश तो कब का मर गया, मैं तो.....।’
‘जस्ट शट अप अंश! डोन्ट यू डेयर टू से इट अगेन!’
‘अरे! क्या हुआ?’ मैंने ब्रेक लगा दिये।
वो मेरी तरफ देख तक नहीं रही थी। शर्म, अफसोस से भारी उसकी आँखें मेरी तरफ देखने में असमर्थ थीं। ना जाने क्यों उसने ऐसी प्रतिक्रिया की?
‘आई एम सॉरी।’ उसने एक बार मेरी तरफ देखा। ‘दोबारा इस तरह की बात मत कहना प्लीज।’
‘लेकिन तुम्हें बुरा क्या लगा?’
‘गॉड! मैं तुम्हें नहीं समझा सकती। यू आर ए फ्लर्ट, तुम नहीं समझ सकोगे!’ उसने बस कह दिया ये सब किसी तरह!
यकीनन मेरे चेहरे से सारी रंगत मिट गयी होगी।
मैंने फिर दोबारा उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं की। उसे यकीन दिलाना भी नहीं चाहता था कि मैं प्यार के एहसास को समझ सकता हूँ, महसूस कर सकता हूँ।
कुछ किलोमीटर खामोशी से चलकर मैं एक जगह रुक गया। कुछ आम से सवाल उसे और उसके परिवार को लेकर किये।
‘सब कुछ वैसा ही है, कुछ नहीं बदला। समीर का एटीट्यूड से लेकर मनोज का स्ट्रगल। कभी कभी लगता है कि अच्छा ही हुआ कि तुम इस लाइन में चले गये वर्ना यहाँ शिमला में तो जाब्स हैं ही नहीं।’
मैं चुपचाप उसे सुन रहा था बस। ‘बाकी लोग तुम्हें सब यहाँ बहुत इज्जत देने लगे हैं। ये जो तुम्हारा निक नेम है न फ्लर्ट! वो सबसे ज्यादा मशहूर है।’
‘तो तुम टॉपिक छोड़ोगी नहीं?’
उसने हँसते हुए ना में सिर हिला दिया। मेरे चेहरे पर कुछ पढ़ते हुए-’जिस शब्द से तुम्हें इतनी चिढ़ थी उसी को आज तुम क्यों अपनी पहचान बना रहे हो? अच्छा लगता है कि तुम्हारा नाम एक के बाद एक लड़कियों से जुड़ता है, फिर छूटता है और छूटते ही फिर जुड़ जाता है।’
‘मैंने जानकर तो अपने बारे में लोगों की ये राय नहीं बनायी है।’
‘तो फिर वो तुम्हारी इतनी सारी गर्लफ्रेन्डस?’
‘वो सब मेरी गर्लफ्रेन्डस नहीं हैं, बस कुछ हैं।’
‘ओ के तो बस कुछ हैं। गुड! और कोई स्पेशल?’
पहले तो ना कोई नाम सूझा और ना ही चेहरा, फिर अचानक एक मुस्कुराहट आँखों पर चौधिंया गयी और-‘हम्म। एक है, जो गर्लफ्रेन्डस तो नहीं है लेकिन बहुत अच्छी लगती है, बिल्कुल बच्चों जैसा स्वभाव है उसका।’
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