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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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इस बीच मैं काम और इन झमेलों में इतना उलझा रहा कि करीब 10 महीनों से घर नहीं जा सका। घर में सब मुझ से नाराज चल रहे थे। पता नहीं कितने दिनों से मैंने घर पर ठीक से बात तक नहीं की थी। कितने ही त्योहार, कितने ही खुशी और दुःख के मौके जिनमें हमें साथ होना था लेकिन मैं उनके साथ नहीं था। बस फोन पर ही बेटा होने का हक अदा कर रहा था या उनको वक्त-वक्त पर पैसे भेज कर। इस बार लगभग 10 महीनों बाद पापा के श्राद्ध के लिए मैं घर जा रहा था। मेरे घर वालों को मुझसे कई शिकायतें थी लेकिन आज भी मेरी वापसी पर उतने ही खुश थे, जितने हमेशा होते थे।

घर पहुँचकर हमेशा की तरह मेरा बैग मेरी बहनों के पास चला गया और मम्मी को बस मुझसे ही मतलब था लेकिन वो इस बार मेरे वापस आने पर इतनी खुश नहीं थी जितनी हर बार होती थी और मैं उनको देखकर समझ गया कि इस बार मुझे उनको मनाने में थोड़ी मेहनत करनी होगी। उनको मेरे नाम, काम और बदनामी, सबसे नाराजगी थी। वो मुझे लेकर दूसरी बार निराश दिखीं लेकिन पहले की तरह इस बार उनको कोई गलतफहमी नहीं थी।

प्रीती भी जानती थी कि मैं शिमला आ रहा हूँ। मुझे घर आये हुए दो घण्टे ही हुए थे कि मेरे मोबाइल पर उसका मैसेज आ गया।

‘आई एम वेटिंग आउटसाईड।’

मैं मम्मी और बहनों के साथ चाय पी रहा था लेकिन बीच में ही उठना पड़ा। रात के लगभग 12 बज रहे थे और वो अकेली ही बाहर खड़ी थी। मैं बाहर आ गया।

ये एक चाँदनी रात थी। मैं उसे साफ देख सकता था। मेरे घर के सामने की सड़क के पार एक घने से पेड़ के नीचे खड़ी हुए। अपने हुड की जेब में हाथों को डाले मैं उसकी तरफ बढ़ा।

इस बीच वो काफी बदल चुकी थी।

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