ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘ग्लैन्स वालों को भी आगे अपने क्लाइन्ट की रजा मन्दी चाहिये होगी...’ वो मेरी नजर से देखता नजर आ रहा था। उसकी उलझी सी नजरें कोई रास्ता तलाश करती दिखीं और फिर ना जाने क्यों अचानक!
‘नो! डॉली इस लायक नहीं है! पिछले एक साल में अगर उसने कुछ किया है तो वो बस तुझसे दोस्ती। इसके अलावा वो और कुछ नहीं कर सकी है जिसे गिना जा सके। मैं ये काम यामिनी को ही ऑफर कर रहा हूँ, बस। बात खत्म!’
‘और अगर उसने मना कर दिया?’ ऐसा वाकई हो सकता था क्योंकि यामिनी को भारत छोड़ने में ज्यादा वक्त नहीं था। बमुश्किल ही वो किसी नये कान्ट्रेक्ट में बँधने को तैयार होती। संजय को एक बार फिर मैंने सोचने पर मजबूर कर दिया।
‘अगर वो मना करती है तो भी मैं किसी और नये चेहरे को मौका देने को तैयार हूँ लेकिन उसे नहीं!’
‘मैं उसकी जिम्मेदारी लूँ तब भी नहीं?’ ये मेरा आखिरी हथियार था।
संजय सकपका गया।
‘तू अपना वक्त खराब करेगा अंश और साथ ही नाम भी। और अगर तुझे बात खुद करनी पड़ी तो जुबान भी!’
‘संजय, तुमने यामिनी को मौका दिया तब वो कुछ बनी थी ना, नहीं तो वो भी तो धक्के ही खा रही थी और शायद अब तक खाती रहती। तुमने उसे बनाया है, मुझे बनाया है।’
उसका चेहरा मुझ पर मुस्कुराया भी और उसमें एक नाज भी था।
‘अंश, तुम दोनों हीरे थे। तुममें अपनी चमक थी, लेकिन डॉली? वो मिट्टी है मिट्टी। वो बन चुकी जो उसे बनना था।’
लगा मैं हार गया। उसके सामने कुछ बोलकर कोई फायदा नहीं हुआ। मैं चुपचाप अपनी ड्रिन्क पीने लगा। संजय ने कुछ महसूस किया मुझमें और थोड़े मजाक के अन्दाज में- ‘मैं समझ नहीं पा रहा आखिर तू करना क्या चाहता है? तू डॉली को बनाना चाहता है या किसी और मिटाना?’
कोई-कोई मजाक चोट भी पहुँचा जाता है।
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