ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
59
देर रात। संजय का केबिन।
बिल्कुल अनौपचारिक वक्त था ये ऑफिस में होने का। थके, निढाल, हाथों में अपने अपने ड्रिन्क पकड़े हुए संजय और मैं किसी बहस पर आगे बढ़ रहे थे।
ये पोर्टिको का सुनहरा वक्त था। कई बड़े ब्रान्ड और नये चेहरे बस इसी से जुड़ गये थे लेकिन यामिनी की डिमान्ड अब थी और संजय आदतन हर बड़ी डील उसे ही सौंप देता था। वो किसी नये चेहरे पर शर्त लगाकर हारना नहीं चाहता था।
इसी तरह फिर एक बड़ी डील उसके हाथ में थी जो एक बार फिर यामिनी की गोद में गिरने वाली थी और मैं चाहता था कि ये डील इस बार डॉली की गोद में गिरे।
जाहिर है कि उसने इन्कार ही करना था।
‘अंश, माना तू जो कह रहा है उससे डॉली बहुत उठ सकती है, लेकिन तुझे यकीन है कि वो ये काम कर पायेगी? कुछ एक रेम्प शोस वो मेरी या तेरी बदौलत, यही है जो उसने आज तक किया है!’ चेहरा थोड़ा कड़वा करते हुए- ‘ना वो डिमान्ड में है और ना ही उसे कोई अनुभव है। उसे कुछ और दिन हाथ साफ करने दे।’ उसने एक घूँट पिया।
‘संजय उसमें बहुत वक्त लग जायेगा। यामिनी वैसे भी ये फील्ड छोड़ ही रही है। हमें कुछ और आप्शन्स चाहिये। कुछ नये चेहरे जिन पर हम भी भरोसा कर सकें और मार्केट भी।’
‘अरे उसे खुद अपने आप पर ही भरोसा नहीं है।’ उसने आँख मारी और बेतहाशा हँसने लगा।
‘तुम्हें तो बस मजाक करना है।’ मैं अपने आप में बोला। थोड़ी निराशा हुई मुझे उसकी सोच पर। मेरी नाराजगी का कुछ असर हुआ उस पर और-
‘ओ के सॉरी!’ गिलास मेज पर रखते हुए- ‘लेकिन ग्लैन्स को कोई सुपरमॉडल चाहिये इस प्रॉडक्ट के लिए। एक कान्फीडेन्ट मॉडल, एक मशहूर चेहरा! शी कान्ट बी द फेस ऑफ दिस प्रॉडक्ट! ग्लैन्स वालों से बात करके भी अपना मुँह गन्दा करने वाली बात होगी।’
‘वैसे भी हमारे मुँह कौन से दूध के धूले हैं?’ मैंने ताना मारा। मैं उसकी ओर झुका- ‘तुम बात तो करो एक बार!’ उसकी जिद छूट रही थी। मैं जानता था कि छूट रही है क्योंकि अब उसने अपनी बात के तर्क देने शुरू कर दिये।
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