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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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कितना अलग एहसास था उन लोगों के साथ काम करने का जो आपकी जमीन से नहीं हैं। सब अन्जान! ना आपकी भाषा जानते हैं ना आपकी संस्कृति। जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या महसूस कर रहे हैं? जिन्हें आपसे या आपके मिजाज से कोई मतलब नहीं है लेकिन हाँ आपके काम से है।

मुझे वो लोग रूखे लेकिन अपने काम के प्रति कहीं ज्यादा समर्पित लगे। भले ही उनमें गुरूर था लेकिन वो मेहनती भी थे और ठीक ऐसा ही वो मुझसे भी चाहते थे। उन्होंने बातों में बिल्कुल भी वक्त जाया नहीं किया बस जल्द से जल्द काम खत्म किया।

आस्ट्रेलिया में मेरी पहली रात।

मेरी काफी भी खत्म नहीं की थी कि किसी ने डोर बैल बजायी।

‘वन सैक!’ मैंने दरवाजा खोला। कुछ 17 बरस का लड़का स्कूल यूर्निफार्म पहने खड़ा था। ‘येस?’

‘मे आए सर?’ उसने बहुत ही सम्हले से अंदाज में पूछा। मेरे इजाजत देते ही वो अन्दर आया और इससे पहले कि मैं कुछ पूछ पाता- ‘व्येहर इज दोज पैकेट्स?’ उसने सवाल कर लिया।

संजय ने पहले ही मुझे बता दिया था कि उसका क्लाइन्ट खुद आकर पैकेट ले जायेगा लेकिन मैं बेहद हैरान था कि-’ये क्लाइन्ट है?’

‘वेट हैयर।’ मैंने कॉफी का कप एक तरफ रखा और सूटकेस में पैकेट ढूँढने लगा। सारा सामान खंगाल डाला लेकिन वो पैकेट नहीं मिले। उसके बाद मैंने अपना बैग लिया और उसे खोल ही रहा था कि-

‘कैन आई ट्राय?’ उसने पूछा।

उसने वो ही सूटकेस उठाया जिसमें मुझे कुछ नहीं मिला था। उसने इतमिनान से सूटकेस खोला और यकीन के साथ मेरी एक जैकेट बाहर निकाल ली। उसने उसकी बाँहों और छाती के हिस्सों में कुछ टटोला और- ‘आई विल टेक इट।’

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