लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

44

रात 2 बजे।


अपने जेबों में फ्लैट की चाबी टटोलते हुए मैं लिफ्ट से बाहर आया तो देखा कि वो मेरे फ्लैट के सामने की गैलरी में टहल रही है। इस वक्त? सोचते हुए धीमे से कदमों पर चलकर मैं उस तक पहुँचा तो एहसास हुआ कि सभी की तरह ये भी होश में नहीं है।

‘तुम ये रात के दो बजे यहाँ क्या कर रही हो?’

‘जस्ट..... नाइट वॉक।’ नशीली मुस्कान के साथ उसने जवाब दिया।

‘ये वक्त है घूमने का? अपने फ्लैट में जाओ।’ मैं फ्लैट के दरवाजे की तरफ बढ़ा।

‘अंश, रुको। प्लीज!’ वो आड़े आ गयी। ‘कम से कम मेरी बात तो सुन लो।’ मेरी छाती के बीच एक हाथ टिकाये- ‘तुम नाराज हो मुझसे?’

‘नहीं, क्यों?’ मैंने उसका हाथ हटा दिया।

‘तो मुझसे भाग क्यों रहे हो? ना मिलते हो ना बात करते हो।’

‘हम अक्सर बात करते है आई थिंक।’

‘लेकिन पहले की तरह नहीं। तुम बदल गये हो आजकल।’

एक पल को लगा कि उसे सही जवाब दे दूँ लेकिन फिर खुद के एहसासों पर काबू करते हुए- ‘तुम सही हो। मैं बदल ही गया हूँ।’ मैं कोशिश में था कि उसके सामने कमजोर ना पड़ूँ।

‘और मैं वजह जान सकती हूँ?’

‘सॉरी।’ मैं दोबारा दरवाजे की तरफ मुड़ गया। बस उसे किसी तरह टालना चाहता था। मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

‘क्योंकि काफी लड़कियाँ आ गयीं है आज तुम्हारी जिन्दगी में?’ कुछ खो देने का एहसास मिला था उसकी आवाज में। आखिरी लफ्जों में लगभग काँप गयी थी उसकी आवाज। जिस हाथ से मैं दरवाजा खोल रहा था उसने थाम लिया। धीरे से उसे अपने गाल पर टिकाये, डबडबायी सी आँखों से वो मेरे चेहरे पर देखने लगी। कितनी दीन! कितनी मायूस! उन आँखों में देखने की गलती काश मैंने ना की होती। मेरी हिम्मत टूट गयी!

‘तुम किसकी बात कर रही हो?’ आखिरकार में नर्म पड़ ही गया। ‘मैं बस तुम्हारी जिन्दगी से दूर रहना चाहता हूँ।’ मैंने अपना हाथ जल्द ही वापस ले लिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book