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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


6.    अब आती है – ध्वनि प्रदूषण की समस्या। गाँवो के शान्त-स्वच्छ वातावरण के बीच रहने वाले विद्यार्थी इस दृष्टि से सौभाग्यशाली हैं। परल्तु शहरों में रहने वाले विद्यार्थियों को इस ध्वनि प्रदूषण की समस्या का सामना करना पड़ता है। चूँकि ध्वनि प्रदूषण सभी कस्बों तथा नगरों में बुरी तरह से फैला हुआ है, अतएव इसे सहन करने के सिवाय अन्य कोई विकल्प नहीं। चाहे कोई कितना भी इस समस्या को नजर अन्दाज करने का प्रयास करे, पर ध्वनि-विस्तारक यंत्र चिंघाड़ने लगते हैं, तो अध्ययन में शीघ्र ही व्यवधान पड़ जाता है। बेचारे छात्र अपनी दुर्दशा को भलीभाँति समझते हैं। ये ही सब मिलकर नागरी जीवन के नारकीय अनुभवों की सृष्टि करते हैं।

समाज का शिक्षित वर्ग और शिक्षाशास्त्री भी इस विषय में अपने को असहाय पाते हैं। सम्भवतः शिक्षाशास्त्रियों के पास अधिकार नहीं हैं और जिनके पास अधिकार हैं, उनके पास विवेक-शक्ति का अभाव है। खैर, ध्वनि प्रदूषण से निजात पाने का एक रास्ता है अवश्य, और वह यह है कि छात्र अपने मन के भीतर अध्ययन में उत्कृष्टता प्राप्त करने की तीव्र इच्छा विकसित करें। यदि मन में ऐसी तीव्र व्याकुलता है तो फिर बाहरी शोरगुल शायद ही सुनाई पड़े। उदाहरण के लिए, जब हमारा मन किसी चिन्ता से आक्रान्त हो जाता है, तो हमारे बगल में भी बजने वाले नगाड़े की ध्वनि हमें सुनाई नहीं देती। परीक्षा के सिर पर आ पहुँचने पर यह व्याकुलता या उत्कंठा चरम सीमा पर देखी जा सकती है। परन्तु यदि परीक्षाओं के दूर रहते ही हम उनमें श्रेष्ठता हासिल करने की दृढ़ता पा लें, तो हम अध्ययन में एक प्रकार की एकाग्रता विकसित कर सकते हैं। परन्तु इसके साथ ही यह भी स्मरण रखना आवश्यक है कि किसी के लिए भी बात-बात में एकाग्रता का विकास कर लेना सम्भव नहीं है।

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