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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


7.    एक दूसरा उपाय भी है, जिसके द्वारा अध्ययन में एकाग्रता प्राप्त की जा सकती है, और वह है पठनीय विषय पर अच्छी तरह ध्यान देना। इस सतर्कता को अवधान कहते हैं। इसका अर्थ है मन को जागरूक बनाए रखना। बहुत से छात्र ध्यानपूर्वक अध्ययन करने में असमर्थ होते हैं, क्योंकि उनका मन एक प्रकार से दिवा-स्वप्नों में खोया रहता है अथवा निरुद्देश्य ही चारों ओर भ्रमण करता रहता है। जिसका मन जागरूक है, केवल वही एकाग्रता की प्राप्ति में सफल हो पाता है। इसे पढ़कर यह प्रश्न उठ सकता है, तो फिर मन को कैसे जागरूक रखा जा सकता है? कुछ उपयोगी सुझाव यहाँ प्रस्तुत हैं –

  • कुछ विशेष प्रकार के पदार्थ निद्रा में वृद्धि करते हैं। ऐसे पदार्थों का त्याग कर देना चाहिये।
  • मन तभी सशक्त होगा, जब शरीर के विभिन्न अंग स्वच्छ रखे जांय। इसके अतिरिक्त पहनने के वस्त्र, बिस्तर आदि दैनन्दिन उपयोग की सारी वस्तुएँ साफ रहें।
  • कमरे की अन्य सभी वस्तुएँ तथा दैनिक उपयोग की चीजें सुव्यवस्थित रूप से रखी जांय। यह सुशृंखलता सबल रूप से मन की जाग्रत अवस्था को प्रकट करती है। अधिकांश छात्रों में लापरवाही का भाव ही देखने में आता है। उनकी व्यक्तिगत चीजों तथा पुस्तकों की दुरवस्था को देखकर हम आसानी से समझ सकते हैं कि वे कितने लापरवाह हैं।
  • विद्यार्थियों के जानने योग्य एक दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि शरीर के समान ही मन को स्वच्छ रखना आवश्यक है। अश्लील एवं भद्दे विचारों को मन में प्रवेश करने से न केवल रोका जाना चाहिये, बल्कि मन को उनकी हवा तक नहीं लगने देनी चाहिये, क्योंकि ये विचार ही हमारे मन में तबाही मचाने तथा उसे बिगाड़ने में मूलभूत कारण हैं। मन यदि तंन्द्राच्छन्न तथा स्वप्नपरायण है तो भी अधिक चिन्ता की बात नहीं, परन्तु अश्लीलता और भद्दगी यदि एक बार मन में प्रविष्ट हो गई तो फिर एकाग्रता का प्रश्न हीं नहीं उठता। चूँकि एक शुद्ध तथा अदूषित मन आसानी से एकाग्र हो जाता है, अतः बुरे तथा दूषित विचारों को मन के पास नहीं फटकने देना चाहिए।
  • छात्रों को मन-ही-मन संकल्प करना चाहिए – “मैं एक घण्टे के भीतर इतने हिस्से का भलीभाँति अध्ययन करूँगा।” और निर्धारित समय के दौरान उस अंश का अध्ययन पूरा कर लेने के लिए उद्विग्नता का अनुभव करना चाहिए। आरम्भ में सम्भव है कि निर्धारित समय में उस हिस्से का अध्ययन समाप्त न हो सके, परन्तु ऐसे आकुल प्रयत्नों से मन के जागरूक रहने की सम्भावना बढ़ जाती है।

इस प्रकार मन को जागरूक रखने का यह निरन्तर प्रयास काफी हद तक मन की एकाग्रता को विकसित करने में सहायक होगा।

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