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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


2.    एक बार लिखने या पढ़ने बैठ जाने के बाद अनावश्यक रूप से अपना शरीर नहीं हिलाना चाहिए। बहुत से छात्र पढ़ते समय बड़ी बेढंगी मुद्रा में बैठते हैं। कुछ अन्य हैं जो पढ़ते समय अन्यमनस्क होकर किसी-न-किसी वस्तु को घूरते हुये अपना पेन या पेन्सिल नचाते रहते हैं, मानो वे किसी गहरे चिन्तन में डूबे हुये हों। ऐसे ही और भी कई प्रकार की दिखावटी आदतें होती हैं। ये सभी एकाग्रता में बाधक हैं। जैसे एक हिलते हुये बर्तन में रखा हुआ पानी स्थिर नहीं रह सकता, उसी प्रकार शरीर की मुद्रायें बदलते रहने से मन भी चंचल होता रहता है। अतएव अध्ययन के समय एक उचित तथा स्थिर मुद्रा में बैठना बड़ा महत्व रखता है।

3.    कहना न होगा कि अध्ययन के लिए एक बार में एक ही विषय चुन लिया जाय। जब अध्ययन के लिए एक निर्धारित विषय चुन लिया गया, उसके बाद मन को कम-से-कम एक घण्टा उसी में तल्लीन रखा जाय। किसी पुस्तक को मात्र पढ़ डालने से ही अध्ययन नहीं हो जाता। एक पुस्तक को केवल पढ़ डालने और उसका अध्ययन करने के बीच जो अन्तर है, व्यक्ति को उसे अवश्य ही समझ लेना चाहिये। एकाग्रता दोनों में ही लगती है।

जल्दबाजी में किसी पुस्तक को पढ़कर पाठक उसके सार संक्षेप से परिचित हो सकता है। परन्तु विस्तारित अध्ययन मन को इस योग्य बना देता है कि वह विषयवस्तु की गहराई में उतरकर उसके यथार्थ तात्पर्यों को जान ले, जो बहुधा सरसरी निगाह से छिपे रहते हैं। इसके फलस्वरूप विषय-वस्तु पर अच्छी पकड़ हो जायेगी और भावी अध्ययन में भी सहायता मिलेगी।

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