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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।

एकाग्र मन की विषयवस्तु और लक्ष्य

यह सत्य है कि मन को एकाग्र करना है, किन्तु उसका विषयवस्तु और लक्ष्य क्या हो?

इसका एक ऐसा सुनिश्चित उत्तर देना सम्भव नहीं, जो सभी व्यक्तियों के लिए अनुकूल हो, क्योंकि यदि कहा जाय कि आत्मज्योति पर मन को एकाग्र किया जाय, तो यह उचित नहीं होगा, क्योंकि सभी योगी बनने के इच्छुक नहीं है। और न ही यह कहा जा सकता है कि मन को ईश्वर पर एकाग्र किया जाय, क्योंकि हर व्यक्ति भक्त नहीं बनना चाहता। फिर यदि मन को पाठों पर एकाग्र किया जाय, तो कैसा रहे? लेकिन सभी लोग तो स्कूल जाने वाले विद्यार्थी नहीं हैं। अतः सर्वाधिक उचित तो यही होगा कि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही मनःसंयोग के लिए अपना खास विषय चुन ले।

1.    जिस प्रकार प्रत्येक योगी को ध्यान करने के लिए एक स्थिर तथा उचित रूप से सुखद आसन की आवश्यकता होती है, उसी तरह प्रत्येक विद्यार्थी के पास अपनी किताब-कापियों को फैलाकर सुविधापूर्वक बैठने के उपयुक्त मेज कुर्सी अवश्य हो। छात्रों तथा योगियों में कई दृष्टियों से समानता दीख पड़ती है। यहाँ पर यह प्रश्न कदापि नहीं उठना चाहिये कि निर्धन विद्यार्थी कहाँ से इतनी बड़ी मात्रा में मेज-कुर्सियों की व्यवस्था कर सकेंगे? या फिर कोई यह पूछ बैठे कि क्या श्री एम. विश्वेश्वरैया के पास उनके विद्यार्थी जीवन में मेज-कुर्सी थी? क्या वे सड़क की रोशनी में पढ़कर विश्वविख्यात व्यक्ति नहीं बन गये? ऐसे तर्क भी यहाँ लाने की आवश्यकता नहीं। निश्चित रूप से सड़क की रोशनी में पढ़ने वाले सभी बालक विश्वेश्वरैया नहीं बन जाते। अस्तु जिन लोगों में मेज-कुर्सी लेने की सामर्थ्य नहीं, वे कम से कम एक डेस्क तो रख ही सकते हैं।

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