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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


किरणों को यह शक्ति कहाँ से मिली? वह इसके एक बिन्दु पर केन्द्रित करके ‘एकाग्र’ बनाने का परिणाम था। इसके पहले ये किरणें विभिन्न दिशाओं में बिखरी हुई थीं। इसी कारण गर्मी उत्पन्न कर पाने के बावजूद वे आग पैदा करने में असमर्थ रहीं, परन्तु एक बिन्दु पर केन्द्रित किये जाने पर उसी से आग धधक उठी। यही एक स्मरणीय रहस्य है।

हमारे मन में अद्भुत शक्ति निहित है, पर चूँकि यह शक्ति सभी प्रकार के आवश्यक तथा अनावश्यक कार्यों में नष्ट होती जा रही है, अतः हम केवल अति सामान्य कार्य करने में ही सक्षम हो पाते हैं। यदि महान उपलब्धियाँ करनी हों तो मन की विभिन्न शक्तियों को एक सूत्र में पिरोना होगा। और यह केवल तभी सम्भव है, जब मन हमारे स्वयं के नियंत्रण में हो।

परन्तु बिना कुछ सुने पागल के समान दौड़ने वाले इस मन को भला कैसे अपना कहा जा सकता है ? जो मन इन्द्रियों के आमंत्रण पर विषयों में डूब डाता है, वह निश्चित रूप से हमारा अपना नहीं है। अब हम इस मन को, जो कि हमारा अपना नहीं है, किस प्रकार अपने इच्छित कार्यों में लगायें ?

हमारे प्राचीन ऋषियों ने पहली उपलब्धि की थी – निरन्तर प्रयास के द्वारा मन को नियंत्रण में लाकर मानसिक सन्तुलन स्थापित करना। और जब ऐसे संयमित मन को एकाग्र किया जाता था, तो उनमें योग के महान रहस्यों को उद्घाटित करने की क्षमता आ जाती थी। इससे उन्हें दिव्य-ज्ञान की प्राप्ति हुई।

एकाग्र मन एक सर्च लाइट के समान है। सर्चलाइट हमें दूर तथा अँधेरे कोनों में पड़ी वस्तुओं को भी देखने में समर्थ बनाता है।

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