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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


यह कैसे हो सकता है? यहाँ पाँच ज्ञानेन्द्रियों की भूमिका दृष्टि में आती है। आँख, नाक, कान, जिह्वा तथा त्वचा – ये पाँचो मन के यंत्र हैं। ज्योंही आँख की ज्योति किसी आकर्षक वस्तु पर पड़ती है, त्योंही मन उस पर कूद पड़ता है। ये इन्द्रियाँ ही मन को विभिन्न दिशाओं में खींचती रहती हैं। अतः बुद्धि की सहायता से इन्द्रियों को नियंत्रण में रखना आवश्यक है। तात्पर्य यह है कि हम उसे न देखें जिसे देखना उचित नहीं, उसे न सुनें जिसे सुनना उचित नहीं, उसे न खायें जिसे खाना उचित नहीं, वह न करें जिसे करना उचित नहीं। इसी को संस्कृत में ‘दम’ कहते हैं।
मन ज्ञानेन्द्रियों की सहायता के बिना भी जहाँ खुशी हो जाना चाहता है। ऐसी परिस्थिति में बुद्धि की सहायता से मन को पुनः वापस ले आना चाहिये। मन को संयमित रखने की इस प्रत्यक्ष विधि को ‘शम’ कहते हैं।

मन तथा इसके निग्रह के विषय में इतनी जानकारी प्राप्त करने के बाद भी कोई पूछ सकता है कि आखिरकार इस मन को नियंत्रित करने की आवश्यकता ही क्या है? इसका सही उत्तर जानना हमारे लिए आवश्यक है। इसका उत्तर यह है कि यदि किसी व्यक्ति का मन उसके स्वयं के नियंत्रण में है, तो इसके द्वारा महान उपलब्धियाँ सम्भव हैं, जबकि वह आपके नियंत्रण में नहीं है तो यहाँ तक कि साधारण से साधारण कार्य भी उसे कठिन तथा असम्भव लगते हैं।

वस्तुतः मन विराट शक्तियों का आगार है, तथापि कुछ लोग बीच-बीच में या फिर जीवन भर ही मानसिक दुर्बलता के शिकार दिख पड़ते हैं। इसका कारण यह है कि उनकी मानसिक ऊर्जा की अविवेकपूर्ण बरबादी हुई है। सभी इस बात को नहीं जानते कि सूर्य की किरणों में अग्नि उत्पन्न करने की क्षमता निहित है। क्यों नहीं जानते? इसलिए कि अब तक उन्होंने सूर्य की किरणों से आग उत्पन्न होते तथा वस्तुओं को जलते नहीं देखा होगा। किन्तु जब उन्हीं किरणों को एक उत्तल लेंस से गुजारकर कागज के एक टुकड़े पर डाला जाता है, तो वे उसे जला देती हैं।

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