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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


अब यह जानने के बाद कि एकाग्रता में ही सफलता व आनन्द निहित है, छात्र को हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के स्थान पर तत्काल पूरी शक्ति के साथ इसके अभ्यास में लग जाना चाहिए। सच्ची एकाग्रता का लक्षण यह है कि इसकी सहायता से व्यक्ति अपने अध्ययन में इतना डूब जाता है कि वह न केवल परिवेश, वरन अपने शरीर तक को भी भूल जाता है।

यदि कोई व्यक्ति अपने शारीरिक रोगों को नष्ट कर अच्छे स्वास्थ्य का आनन्द उठाना चाहता है, यदि कोई अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करने का इच्छुक है और यदि कोई सचमुच ही एकाग्रता प्राप्त करने पर तुला हुआ है, तो उसे योगासनों का आश्रय लेना चाहिये। योगासन का नियमित अभ्यास शरीर के स्नायु तंत्र को सबल तथा सक्रिय बनाता है और इस प्रकार एकाग्रता के विकास में सहायक होता है। योगासन मानव जाति के लिए एक वरदान हैं।

युवकों का मन एक जलप्रपात के समान है। इसमें एक विशाल जलराशि पर्वत की ऊंचाइयों से तेजधार के रूप में नीचे उतरती है और चारों ओर बिखर कर बहते हुये, अन्त में बिना किसी उद्देश्य की पूर्ति किए ही समुद्र में जाकर समाप्त हो जाती है। दूसरी ओर, इस जल के चारों ओर यदि एक बाँध बना दिया जाय और इसके बहाव को नहरों के द्वारा व्यवस्थित कर दिया जाय, तो इससे सिंचाई के काम में लगाकर अच्छी फसल उपजायी जा सकती है।
इसी प्रकार युवकों की बिना किसी उद्देश्य के ही बरबाद हो जाने वाली असंयमित तथा उचछृंखल मानसिक शक्तियों के चारों ओर नियमों तथा अनुशासन का बाँध बनना चाहिये, आचार-संहिता की नहरें खुदनी चाहिए और शिक्षा, कला, साहित्य एवं प्रौद्योगिकी के खेतों का मानसिक शक्तियों के जल से सिंचन होना चाहिए। तभी हम संस्कृति की एक अद्भुत फसल पैदा कर सकेंगे।

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