लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एकाग्रता का रहस्य

एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


आज के छात्रों की शैक्षणिक योग्यता, और विशेषकर उनकी लेखन-क्षमता कितनी दयनीय हो गयी है, यह जानने के लिए उनसे किसी विषय पर एक निबन्ध लिखने को कहना ही पर्याप्त है। उसके प्रत्येक पृष्ठ पर हमें यथेष्ठ मात्रा में गलत शब्दों के प्रयोग, वर्तनी की भूलें तथा त्रुटिपूर्ण वाक्य मिल जायेंगे। छात्र चाहे कितना भी प्रतिभावान क्यों न हो, परन्तु बिना परिश्रम व उद्यम के उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता।

इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, “केवल अभ्यास तथा वैराग्य के द्वारा ही एकाग्रता की प्राप्ति सम्भव है।” अभ्यास का अर्थ है – निरन्तर उद्यम और अथक प्रयास। पाँच वर्ष के एक बालक के लिए कुछ साधारण शब्द भी लिख पाना बड़ा कठिन हो सकता है, किन्तु वही बालक यथासम्भव जब दसवीं के स्तर पर आता है, तो वह लम्बे वाक्य भी अनायास ही और धाराप्रवाह लिख सकेगा। यह कैसे सम्भव हुआ? और कुछ नहीं, बस केवल अभ्यास के द्वारा ही। इस संसार में अतीत काल में भी महान उपलब्धियाँ होती रही हैं और आज भी हो रही हैं। हमें एक बार अपने खुले मन से उनकी कल्पना करनी होगी। प्रत्येक उपलब्धि के लिए कितने लोग निरन्तर प्रयास में लगे रहे होंगे। अध्यवसायी लोगों के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।

अब हम वैराग्य पर आते हैं – इस शब्द से क्या तात्पर्य है? क्या इसका अर्थ संन्यास  - त्याग आदि है? नहीं, अपने निर्वाचित लक्ष्य की पूर्ति होने तक बाकी सभी आकर्षणों तथा प्रलोभनों से दूर रहना ही वैराग्य का निहितार्थ है। तात्पर्य यह है कि केवल अपने हाथ के कार्य में मन को लगाये रखना और बाकी सब कुछ के प्रति उदासीन रहना – यही वैराग्य है। संन्यासियों का लक्ष्य आत्मानुभूति होने के कारण उन्हें समस्त सांसारिक वस्तुओं का परित्याग करना पड़ता है और इसीलिए वैराग्य शब्द त्याग के अर्थ में प्रचलित हो गया है। अतः आज जब कभी इस शब्द का प्रयोग होता है, तो हमारे मनश्चक्षुओं के समक्ष किसी संन्यासी या तपोवन-प्रस्थान का चित्र उभर आता है, किन्तु यह ठीक नहीं है। कोई भी व्यक्ति जब किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के प्रयास में लगता है, तो वह काफी हद तक अन्य वातों से विरत हो जाता है। एक छात्र से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ज्ञानप्राप्ति के प्रयास में समर्पित होगा। परन्तु यदि उसका मन अन्य प्रलोभलों के द्वारा विच्छिन्न हो रहा है, तो उसकी शिक्षा कैसे अग्रसर होगी? विशेषकर जो लोग एकाग्रता प्राप्त करने का संकल्प ले चुके हैं, उन्हें तो कभी मन को भटकाने वाली वस्तुओं पर दृष्टि तक नहीं डालनी चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book