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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561
आईएसबीएन :9781613012567

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


11.    एकाग्रता की एक और तथा सबसे महत्वपूर्ण चाभी है – प्रेम। यह एक अपरिहार्य नियम है कि मन अपनी पसन्द की वस्तुओं पर ही चिन्तन करता है। जहाँ किसी भी वस्तु के प्रति प्रेम का अतिरेक होता है, मन उसमें तीव्रता के साथ एकाग्र हो जाता है। इस विषय में अधिक विस्तार के साथ कुछ कहने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रिय वस्तु के साथ मन के लगाव का अनुभव करता है। अतः विद्यार्थी के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने अध्ययन के प्रति अनुराग पैदा करें।

आरम्भ में अध्ययन के प्रति इस अनुराग को थोड़े प्रयास के द्वारा विकसित करना पड़ेगा, किन्तु बाद में जैसे जैसे विषय सहज ग्राह्य होता जाता है, वैसे वैसे सहज ही अधअययन के प्रति अनुराग में वृद्धि होती जाती है। और तब मन अपने आप ही एकाग्रता की उपलब्धि कर लेता है।

श्रद्धा एवं प्रेम के द्वारा विकसित एकाग्रता ही सहज तथा स्वाभाविक होती है। यह किसी मानसिक संघर्ष या तनाव से रहित होती है।

अब हम विद्यार्थियों के लिए यहाँ एक विशेष सुझाव दे रहे हैं। भले ही कोई ऊपर बताये गये ग्यारहों सुझावों को अपना ले, परन्तु एकाग्रता की अन्तिम परिणति तभी मानी जायेगी, जब पठनीय विषय पूरी तरह से समझ लिया गया हो। इसलिए व्यक्ति को दुखी होकर इस प्रकार खेद नहीं करना चाहिए, “मैं अभी तक एकाग्रता क्यों नहीं प्राप्त कर सका हूँ?” बल्कि व्यक्ति को धैर्य तथा पूरे उद्यम के साथ अध्ययन करने तथा विषय को स्पष्ट रूप से समझने के प्रयास में लग जाना चाहिये। उदाहरण के लिए कोई पाठ पढ़ते समय उसमें आये कठिन शब्दों को शब्दकोष की सहायता से स्पष्ट रूप से अर्थ जाने बिना अग्रसर नहीं होना चाहिये। अन्यथा इसका परिणाम केवल समय तथा शक्ति की बरबादी मात्र होगा। ऐसी पढ़ाई से बिलकुल भी लाभ नहीं, क्योंकि कोई भी विषय उसमें आये कठिन शब्दों के अर्थ जाने बिना भला कैसे समझा जा सकता है?

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