ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
|
8 पाठकों को प्रिय 429 पाठक हैं |
'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'परन्तु आप...'
'मेरी तुम चिन्ता मत करो। खाने को बहुत है। मेरे कम्पनी से निकलने का इतना तो लाभ हुआ कि हज़ारों मज़दूरों का लाभ हो गया।'
'वेतन चाहे कम्पनी ने बढ़ा दिए; परन्तु लोग अभी तक आप ही की जय-जयकार पुकार रहे हैं। इसका श्रेय आपको प्राप्त है।'
'केथू, वह दिन दूर नहीं जब कम्पनी इनकी हर बात मानने पर विवश हो जाएगी। हमें अभी इनमें जागृति की वह तरंग फूँकनी है कि ऊँचे ही उठते चले जाएँ।'
|