ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
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दूसरे दिन वैसे ही हुआ जैसे विनोद ने कहा था। सब लोगों में कपड़े बाँटने के लिए लाए गए तो सबने दान के कपड़े लेने से इन्कार कर दिया और सब एकस्वर में मिलकर चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, 'हमें भीख नहीं, अपने श्रम के पैसे चाहिएं।'
इस बात की सूचना हवा की-सी तेज़ी से कंपनी के अफसरों तक जा पहुँची। तुरन्त एक बैठक हुई और कम्पनी के विरुद्ध लोगों को भड़काने का आरोप लगाकर विनोद को नौकरी से अलग करने का निर्णय कर लिया और उसे यह सुनाने के लिए दफ्तर में बुलाया।
विनोद बिना किसी भय और घबराहट के बेधड़क आ पहुँचा। इससे पहले कि वे लोग उसका दोष बताकर अपना निर्णय सुनाते उसने स्वयं ही कंपनी के डायरेक्टर के सामने अपना त्यागपत्र रख दिया। उसके इस साहस पर सब आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे। डायरेक्टर ने बुद्धिमानी से काम लेते हुए उसे समझाने का प्रयत्न भी किया। वह जानता था कि कम्पनी की नौकरी में रहते हुए तो वह कोई भयानक कदम उठाने से पहले कई बार सोचेगा; परन्तु त्यागपत्र देकर तो इन सब बन्धनों से मुक्त हो जाएगा और तब वह कुछ भी कर सकता है। उसने उसकी कुछ माँगों को मान लेना भी स्वीकार कर लिया; परन्तु विनोद ने ऐसी कोई नौकरी करने से इन्कार कर दिया जो उसकी आत्मा के विरुद्ध हो।
दूसरे ही दिन कम्पनी ने मज़दूरों का वेतन बढ़ा दिया और उनके लिए अस्पताल और रहन-सहन के लिए मकान बनवाने की व्यवस्था करने का भी वचन दिया। वे यह न चाहते थे कि विनोद के जाते ही मज़दूर उनके विरुद्ध हड़ताल कर दें।
जब कम्पनी का यह निर्णय केथू ने विनोद को बताया तो वह बहुत प्रसन्न हुआ और केथू से बोला-'लो भाई, एक तो चली।'
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