लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

429 पाठक हैं

'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


17


इस घटना से उसके मन ने एक नवसाहस का संचार अनुभव किया और उसके पाँव सफलता की ओर बढ़ने लगे।

एक सुहावनी शाम वह इन्हीं दृश्यों में खोया हुआ था कि माधवी बरामदे में से होती हुई उसके सामनेँ आ खड़ी हुई। विनोद मुस्कराते हुए उसे निहारने लगा, जैसे आज ही शायद प्रथम बार उसे जी भरके देखने का अवसर मिला हो। माँग में सिंदूर...कमर तक पहुँचती हुई नागिन-सी चोटी... लालिमामय गोरा रंग... पतले-पतले कोमल होंठ...वक्ष की उठान... उसका अंग-प्रत्यंग मन को मोह लेने वाला था मानो आकाश से चन्द्रमा की देवी उतर आई हो। वह स्वयं को भूलकर एकटक उसे देखता जा रहा था। माधवी उसकी दृष्टि को अधिक सहन न कर सकी और बोली-'यह क्या?'

'क्या?'

'आप मुझे घूरकर क्यों देख रहे हैं?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai