ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'समझा...' विनोद उसकी बात काटते और उसे सांत्वना देते हुए बोला-'घबराओ नहीं! अब यहाँ ऐसा कुछ नहीं होने का।'
जब केथू चला गया तो माधवी ने विनोद के निकट आते हुए कहा-'इन लोगों से व्यर्थ का वैर ठीक नहीं होगा।'
'क्यों?'
'आपकी नौकरी और हमारी जमीन का किराया...कहीं दोनों से हाथ धोना पड़े!'
'ओह...नौकरी...इसकी तो मुझे चिन्ता नहीं...और जम़ीन का किराया-किसी के बाबा का राज है जो बन्द कर देंगे?'
'इस वर्ष के चुनाव के बाद नये समझौते पर हस्ताक्षर होने हैं। प्रतिवर्ष वह कुछ किराया अपनी इच्छा से अधिक दे देते हैं। यदि...'
'यह तुमने बड़ी अच्छी बात बताई माधवी!'
'जी!'
'यदि इस किसी वर्ष झगड़े पर वह ज़मीन छोड़ दें तो...'
'क्या करना होगा?'
'इसका किराया मैं दूँगा।'
'आप और मैं क्या दो हैं?'
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