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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


घर पहुँचते ही उसने सब बातें माधवी को कह सुनाईं; परन्तु मुस्कराते हुए अपनी चिन्ता उसपर स्पष्ट न होने दी। वह जानता था कि उसे बेचैन देखकर वह उदास हो जाएगी।

वे शाम की चाय पर बैठे ही थे कि चोर-मार्ग से केथू भी वहाँ आया। उसने विनोद को विश्वास दिलाया कि वहाँ के सब लोग उसका साथ देने को शपथ उठा रहे हैं। विनोद ने केथू को उनको सूचित करने की आज्ञा दी कि कल वे भीख के कपड़े लेने से इन्कार कर दें और केवल श्रम के पैसे माँगें।

'आप ठीक कहते हैं। प्रतिवर्ष चुनाव के अवसर पर यह ऐसे ही करते हैं।'

'कैसा चुनाव?'

'असेम्बली का चुनाव। हर बार अंग्रेज़ अफसर चुना जाता है। अब के विलियम फिर खड़ा होने वाला है।'

'उसके विरोध में कौन है?'

'कोई नहीं। हर बार एक जलसा कर लेते हैं और सबके वोट लेकर हाकिम बन जाते हैं।'

'अब की बार विलियम न बन पाएगा।'

'और उसे बनाना भी नहीं चाहिए। वह बहुत बदमाश व्यक्ति है। यहाँ की भोली-भाली लड़कियों को धोखे से अपने बंगले पर ले जाता है और शराब पिलाकर...'

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