ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
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केथू कभी-कभी उसी चोर-मार्ग से उन्हें मिलने आ जाता और वहाँ के लोगों को एकत्र करने के उपाय बताता। भूख से तंग आकर वे लोग धड़ाधड़ ईसाई-धर्म अपनाते जा रहे थे। इसे रोकने के लिए वह बहुत बेचैन था। एक रात उसी चोर-मार्ग द्वारा केथू उसे बस्ती में ले गया जहाँ यह लोग छोटे-छोटे कबीलों में रहते थे। माधवी भी उनके साथ थी।
वहाँ के लोगों ने उनका आदरपूर्वक स्वागत किया। उन दोनों को उन्होंने एक वृक्ष के नीचे बने चबूतरे पर बिठाया और स्वयं घेरा डालकर उनके पास बैठ गए। इस हर्ष में उन्होंने एक लोक-नृत्य भी किया। फूल-मालाएँ लिए स्त्री-पुरुष हाथों में हाथ डाले उनकेँ पास आते और फूलमाला उन्हें पहना देते। वे दोनों फूलों से लद गए। आकाश पर चन्द्रमा पूरे यौवन पर था और उस वन का पत्ता-पत्ता दूधिया चाँदनी में नहा रहा था। आसामी लोकनृत्य से पूरा वातावरण गूँज उठा। बड़ा ही विचित्र दृश्य था-सुन्दर और मोहक! वे लोग जो दिन-भर वातावरण को सिवाय दुःख और चीख-पुकार के कुछ नहीं देते, इस समय जैसे सब-कुछ बिसराकर अति प्रसन्न होकर नाच गा रहे थे! उनके गीतों की मधुर ध्वनि से पर्वत और घाटियाँ चहक उठीं।
नाचते-नाचते केथू ने उन दोनों को भी खींचकर घेरे में सम्मिलित कर लिया और वे भी उनकी ताल पर एक-दूसरे की कमर में बाँहें डालकर धरती पर उल्टे-सीधे पाँव मारने लगे। इससे पहले वे कितने ही क्लबों और पार्टियों में अंग्रेज़ी नाच नाच चुके थे परन्तु यह आनन्द उनमें न था।
नाच के पश्चात् भोजन का आयोजन किया गया था; जिसमें वे भी सम्मिलित हुए। विनोद जानता था कि इन लोगों के हृदय पर अधिकार पाने के लिए यह सब बातें आवश्यक थीं।
खाने के पश्चात् विनोद ने एक छोटे-से भाषण में उन्हें अपना उद्देश्य बताया और उन्हें अपना जाति-धर्म न छोड़ने पर जोर दिया। उसे किसी दूसरे धर्म से वैर न था; परन्तु केवल पैसे और सुविधाओं के लिए दूसरा धर्म अपना लेना उचित न था।
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