ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'कभी सोचता हूँ, अपना जीवन इन लोगों को सुधारने में लगा दूँ।'
'नेता बनना चाहते हैं क्या?'
'नहीं तो...मैं तो स्वयं दुनिया वालों से दूर उजाड़ में भाग आया हूँ। न जाने क्यों, इनके निःश्वास मेरे कानों में पड़ते हैं तो मन में कसक-सी उठती है, और हृदय की आकांक्षाएँ एक गुबार-सा बनकर मस्तिष्क पर छा जाती हैं!'
'आप तो सचमुच किसी और संसार की सोचने लगे! अभी तो नौकरी का पहला दिन है...और यह काम आपको मिला है मानसिक उलझनों पर अधिकार पाने के लिए, न कि उन्हें उभारने के लिए।'
यह कहकर माधवी ने बिजली बुझा दी ताकि वह सो जाए। सर्वत्र अँधेरा हो गया और दोनों चुप लेट गए।
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