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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'ए!' विनोद ने उस स्त्री को ऊँचे स्वर में पुकारा।

वह स्त्री घबराहट में मुड़ी और अपने काम पर लौट गई। बाड़ के पीछे छिपी हुई स्त्री भी उसकी आवाज़ सुनकर झट से बच्चे का दूध छुड़वाकर उठने लगी, परन्तु इससे पहले कि वह सँभलती, विनोद वहाँ पर पहुँच गया और विलियम की भाँति चाबुक हवा में लहराने लगा। उस स्त्री के मुख पर भय और घबराहट देखकर उसने चाबुक रोक लिया और नम्र भाव से बोला-'घबराओ नहीं! मैं तुम्हें डाँटने के लिए नहीं आया बल्कि यह कहने आया हूँ कि बच्चे को आराम से दूध पिला लो...हाँ, बच्चे को दूध।' उसने बिलखते हुए बच्चे की ओर उँगली से संकेत करते हुए कहा।

पहले तो उस मज़दूर स्त्री ने विनोद को कड़ी दृष्टि से देखा और फिर मुस्कराकर उसके सामने ही दूध पिलाने के लिए बच्चे को छाती से लगा लिया।

रात सोने से पूर्व विनोद ने माधवी को भी यह बात सुनाई। अपनी सहमति प्रकट करते हुए माधवी ने कहा-'अन्याय से तो कोई राज्य स्थिर नहीं होता।'

'परन्तु यह सत्य अंग्रेज़ों की बुद्धि में नहीं आता।'

'समय उन्हें स्वयं समझा देगा। वे लोग यहाँ की निर्धनता और दरिद्रता का लाभ उठाते हैं; परन्तु एक दिन उन्हें अपने यह नियम छोड़ने ही पड़ेंगे।'

'माधवी!'

'जी!'

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