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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


आगे बढ़ने पर गुनगुनाहट स्पष्ट सुनाई देने लगी। यह उन सैकड़ों मज़दूरों की आवाज़ थी जो चाय की पत्तियाँ चुनते समय मिलकर गुनगुना रहे थे। इनमें अधिकतर स्त्रियाँ थीं जो पीठ पर टोकरियाँ उठाए मशीन की-सी फुर्ती के साथ चाय की पत्तियाँ बीन रही थीं।

काले-कलुटे लोग मैले-कुचैले कपड़े पहने चारों ओर खेतों में बिखरे हुए थे। विनोद की दृष्टि विलियम के हर संकेत पर उनकी ओर उठती और मीलों की दूरी नाप कर लौट आती।

विलियम अपनी लम्बी-चौड़ी स्टेट देखकर मुस्करा रहा था। उसने विनोद को बयाया कि यह सब ज़मीन कम्पनी ने खरीद ली है। उसने यह भी बताया कि कम्पनी ने बहुत बड़ी रकम मिस्टर बरमन को देनी चाही; परन्तु वह इसे बेचने पर सहमत न हुए, वार्षिक किराया लेने पर ही अड़े रहे। यदि अब वह चाहें तो कम्पनी अब भी अच्छा धन देकर इसे खरीदने को तैयार है। विनोद ने उसे यह कहकर टाल दिया कि इस विषय में वह बिना माधवी से पूछे कुछ नहीं कह सकता।

विलियम ने घोड़े को एड़ लगाई और वह तेज़ी से दौड़ाने लगा। विनोद ने भी उसके पीछे अपने घोड़े को तेज़ कर दिया।

एकाएक वह चौंककर रुक गया और उसने अपने घोड़े की लगाम खींच ली।

विलियम अपना हण्टर निकालकर किसी पर बरसा रहा था। विनोद धीरे-धीरे खेतों में लगी एक बाड़ के पास पहुँचा, जिसके पीछे एक आसामी स्त्री बच्चे को दूध पिला रही थी। विलियम हण्टर से उसको मार रहा था। विनोद ने झट बढ़कर विलियम का हाथ पकड़ लिया और चिल्लाया-'यह क्या मिस्टर विलियम? मानव और पशु में तो कोई अन्तर होना चाहिए!'

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