ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
|
8 पाठकों को प्रिय 429 पाठक हैं |
'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'चाय के खेतों का निरीक्षण करना होगा।'
'कैसा निरीक्षण?'
'मज़दूरों का।'
'मिलेगा क्या?'
'एक हजार रुपया महीना।'
'ओह!' एक लम्बी साँस खींचते हुए वह बोला।
'और एक घोड़ा भी, जिस पर साहब बहादुर की सवारी खेतों से निकलेगी।'
'तुम्हारा क्या विचार है?'
'बुरा नहीं-समय भी कट जाएगा और रुपया भी मिलेगा।'
इस बात पर एक साथ दोनों की हँसी छूट गई। विनोद के मुख पर लालिमा-सी देखकर माधवी के मन को सान्त्वना मिली।
|