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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


मोटर फिर से स्टेट में बनी छोटी-छोटी सड़कों पर से गुज़रने लगी। अब उनके साथ विलियम के स्थान पर बंसी था। उसने आसपास कई कोठियाँ उन्हें दिखाईं, परन्तु कोई पसन्द न आई।

इतने में विनोद की दृष्टि एक कोठी पर पड़ी जो सबसे अलग थोड़ी दूरी पर थी। उसने बंसी से पूछा-'यह किसकी है?'

'सरकार! अपनी ही।'

'खाली है क्या?'

'बरसों से।'

'तो वहीं चलो, बंसी!'

'नहीं हुजूर, वह अच्छी नहीं।'

'क्यों?'

'उजाड़ में है और अशुभ भी।'

'उजाड़ तो हम चाहते हैं...और यह अशुभ क्यों है?'

'रहने दीजिए, मैं आपको इससे अच्छी...'

'नहीं, हम इसे ही देखेंगे। क्यों माधवी?' उनने माधवी की ओर देखते हुए उससे सहमति माँगी।

'आपकी पसन्द सो मेरी पसन्द।'

बंसी चुप रहा और उसने ड्राइवर को उधर ही चलने का संकेत किया। मोटर रुकते ही विनोद लपककर नीचे उतरा और उस ओर बढ़ा। माधवी और बंसी भी पीछे-पीछे उसके साथ चलने लगे।

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