लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

429 पाठक हैं

'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'ओह...मैं तो भूल ही गई...आप कितनी लम्बी यात्रा से आए हैं...चाय...'

'ठहरो! बरमन साहब कहाँ, हैं?'

'अपने कमरे में। आज कई दिन से बिस्तर पर हैं।'

'बिस्तर पर? क्यों, कुशल तो हैं?'

'वही गुर्दे का दर्द...फिर बढ़ गया।'

विनोद माधवी के साथ बरमन साहब के कमरे की ओर बढ़ा। आज उसे यह अपने घर के समान ही लग रहा था; मानो वह भी उसी घर का व्यक्ति था।

जमींदार बरमन की कोठी का रंग-ढंग बदलने लगा। कमरों को नये ढंग से सजाने में विनोद और माधवी अपना समय बिताने लगे। पकवानों में भी परिवर्तन होने लगा। थोड़े ही दिनों में बरमन साहब ने अनुभव किया कि उनकी भतीजी के मन पर से चिंता का बोझ हटता जा रहा है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय