ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
वह भारी पाँव उठाता कोठी के फाटक तक जा पहुँचा और भीतर झाँककर देखने लगा-बाग के सब पौधे अब बड़े हो चुके थे। वह बेल जो कभी उसने अपने हाथों से लगाई थी, बरामदे के स्तम्भ से बढ़कर छत तक जा पहुँची थी। बरामदे में लगे बल्ब की रोशनी झिलमिलाती उसके पत्तों पर नृत्य कर रही थी।
एकाएक भीतर कुछ शोर-सा सुनाई दिया। फिर किसी के भागने की आहट हुई। वह झट भागकर फाटक के साथ अँधेरे कोने में छिप गया। एक नन्हा बच्चा भागता हुआ फाटक के पास आया और चिल्लाया, 'माली! माली...!'
विनोद से न रहा गया। उसने आगे बढ़कर प्यार से बच्चे से पूछा-'क्या है बेटा?'
'माली...नहीं-नहीं, आप कौन हैं?' उसने इस अपरिचित व्यक्ति को सामने खड़े देखकर डरते हुए पूछा।
विनोद ने देखा-बालक के गालों पर आँसू चमक रहे थे।
'मैं हूँ माली...क्या हुआ?'
'नहीं...आप माली नहीं...माली कहाँ चला गया है? मेरी ममी रोती है...सब उसे रुलाते हैं।'
'कौन रुलाता है तुम्हारी ममी को?'
'बुआजी...ताईजी।' वह बिलखते हुए बोला।
'और तुम्हारे डैडी?'
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