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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


7


एक दिन और दो रातों की लम्बी यात्रा के बाद वह लाहौर पहुँचा। आज पूरे तीन वर्ष पश्चात् उसके पाँव अपनी जन्म-भूमि पर पड़े थे। उसका हृदय धड़क रहा था। वह लम्बी-चौड़ी सड़कें...वही लोग...वही बाज़ारों की चहल-पहल...रात का अँधेरा बढ़ता जा रहा था और लाहौर की सड़कें बिजली की रोशनी में जगमगा उठीं। कोई सूरत जानी-पहचानी न थी; परन्तु फिर भी उसे प्रतीत हो रहा था मानो हर कोई उसका अपना ही है। वह स्टेशन रोड पार कर मैक्लोड रोड से माल रोड की ओर हो लिया और शहर की घनी आबादी और भीड़ को चीरता हुआ बाहरी मार्ग से गार्डन टाउन की ओर जाने लगा। इस शहर का हर मार्ग उसके मस्तिष्क पर रेखाओं की भाँति खिंचा हुआ था।

गार्डन टाउन नहर और मार्डन टाउन के बीच में एक नई आबादी थी जिसे उसने अपने रहने के लिए चुना था और वहीं एक छोटी-सी कोठी बनवा ली थी। आज जब वह रात के अँधेरे में कोठी में प्रवेश करेगा तो वहाँ का नक्शा ही बदल जाएगा, शोक का स्थान हर्ष ले लेगा और कामिनी और मुन्ने की प्रसन्नता की तो सीमा न रहेगी।

जब तक वह ताँगे से उतरा तो अँधेरा ढल चुका था। उसने तांगा वहीं सड़क पर ही छोड़ दिया और पैदल चलकर अपनी कोठी की ओर जाने लगा। चारों ओर मौन था। सड़क पर कहीं-कहीं कुछ व्यक्ति टहल रहे थे। कोठरियों से छनती हुई बिजली की रोशनी गार्डन टाउन की छोटी-छोटी सड़कों पर पड़ रही थी।

घूमती हुई उसकी दृष्टि अपनी कोठी पर पड़ी। गोल कमरे के रोशनदान से हरे रंग की रोशनी आ रही थी। वह अपने कमरे में सदा मद्धिम रोशनी रखता था। चौंधिया देने वाली रोशनी से उसे घृणा थी। आज कितने समय के बाद अपनी मनचाही रोशनी को देखकर, जो शायद कामिनी ने उसकी याद में जला रखी थी, उसे प्रसन्नता-सी होने लगी।

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