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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'तो क्या...' वह घबराहट में उठ बैठी और विनोद की ओर देखने लगी जो होंठों पर चंचल मुस्कान बिखेर रहा था।

'हम तुम्हें क्या डुबोएँगे, हम तो तुमसे पहले ही स्वयं डूब चुके हैं।'

मौन को चीरती हुई दोनों की हँसी की खिलखिलाहट दूर तक फैल गई और मचलती हुई तरंगें उनकी नाव को दूर तक ले गईं। उन्हें होश तब आया जब नाव झील के दूसरे किनारे से जा टकराई। दोनों चौंक गए। यात्रा समाप्त होते ही एक नई मंज़िल सामने आ खड़ी हुई।

जैसे ही विनोद ने हाथ का सहारा देकर माधवी को नीचे उतारा, वह सामने लगे बोर्ड पर लिखे हुए शब्दों को उच्च स्वर में पढ़ने लगी-बरमन स्टेट। विनोद ने भी पास आकर वे शब्द दोहराए और आश्चर्य से माधवी की ओर देखने लगा।

'हाँ, यही है मेरे पापा की स्टेट। देखो न, क्या लिखा है! बरमन स्टेट...यही स्थान है जो हमने एक अंग्रेज़ कम्पनी को दे रखा है। आओ चलें, इसे देखें।'

यह कहते हुए उसकी आँखों में बालकों की-सी चंचलता और उत्सुकता थी। विनोद क्षण-भर उसकी प्रसन्नता को देखता रहा और फिर बोला-'यह तो कुछ कठिन है!'

'क्यों?'

'दो बजने को आए...तीन बजे जहाज़ छूट जाएगा...समय क्या है?'

'ओह, यह भी भली रही! मंज़िल के पास पहुँचकर हम असफल लौट चलें?'

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