ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'मुझे तो पटना तक जाना है।
'अकेली?'
'जी। रंगून में प्रतिदिन आक्रमण का भय बढ़ता जाता है, इसलिए हिन्दुस्तान जा रही हूँ...अपने चाचा के पास।'
'और रंगून में?'
'मेरे डैडी हैं...घर हैं...लाखों का व्यापार है; परन्तु अब किसी का भी भरोसा नहीं रहा।' यह कहते हुए उसकी आँखें भर आईं, परंतु झट ही वह स्वयं पर अधिकार पाकर मुस्कराती हुई बोली-'आपको तो रंगून छोड़ते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही होगी।'
'जी?' किसी विचार में खोया वह सहसा चौंककर संभलते हुए बोला-'वह तो होगी-सच पूछिए तो परदेश में घर की याद बहुत सताती है।
'घर की याद या घरवाली की?'
उसके इस प्रश्न पर वह अनियन्त्रित हँस दिया और न जाने उसके मस्तिष्क में क्या आया कि वह अनायास कह उठा-'मैं तो इस बन्धन से अभी स्वतंत्र हूँ।
अचानक जहाज हवा में डोलने लगा। हर किसी के मुख की रंगत बदल गई और वे भयपूर्वक एक-दूसरे को देखने लगे। किसी की समझ में कुछ न आया कि अकस्मात् यह क्या हो गया। इसी समय जहाज का चालक भीतर आया और सबको कमर-पेटियाँ बाँधने को कह गया। अचानक इंजन में कोई विकार उत्पन्न हो जाने से उन्हें जहाज को पास ही के हवाई अड्डे पर उतारना था।
जहाज पहाड़ियों में बने हुए एक अस्थायी हवाई अड्डे पर उतारा गया और सहमे हुए यात्रियों के प्राण लौटे। सब लोग शीघ्र जहाज से बाहर आने लगे।
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