ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
वह क्षण-भर के लिए रुकी और दोनों सहयात्रियों को एक-दूसरे की ओर देखते देखकर मुस्कराई और चल दी। वे दोनों एक-दूसरे के मुख पर दृष्टि डाले क्षण-भर के लिए मुस्कराते रहे। लड़की की आँखों में चंचलता थी।
'यह क्या?' वह सहसा पूछ बैठी।
'जी?'
'पहले चाय और फिर काफी?'
'बात यह है, माँ ने कहा था कि घर में खाओ पसन्द की और यात्रा में सहयात्री की।'
'खूब! आदमी तो आप दिलचस्प हैं, वरना इस भाग-दौड़ में तो कोई अपने साथी से हँसकर बात भी नहीं करता।'
'जी, धन्यवाद!'
इतने में होस्टैस एक ट्रे में काँफी लेकर आ गई। लड़की ने ट्रे से कप उठाकर विनोद के हाथ में दे दिया। उसने मुस्कराते हुए मौन दृष्टि से उसका धन्यवाद किया और दोनों कॉफी पीने लगे।
'आप...रंगून में...?'
'फौज में हूँ...तीन वर्ष के बाद छुट्टी मिली है...घर जा रहा हूं लाहौर।'
'आपकी यात्रा लम्बी ठहरी।'
'क्यों?'
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