लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

429 पाठक हैं

'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


वह धड़ाम से सीढ़ियों पर जा गिरी। बाहर वर्षा और तूफान का जोर था। विनोद ने इसका कोई ख्याल न किया और भीतर से द्वार बन्द कर लिया।

कमरे की खिड़की और द्वार बन्द होने से बरसाती रात का शोर कुछ कम हो गया, परन्तु विनोद के मन का शोर बढ़ता गया। वह बहुत देर तक अपने कमरे में बैठा क्रोध से दांत पीसता रहा। उसे अब विश्वास था कि कामिनी उसकी निष्ठुरता देखने से पहले ही उसके जीवन से भाग जाएगी और वह इस घटना को भूल जाएगा। इसी उलझन में आँख लग गई।

अचानक किसी पतली चीख ने उसकी आंख खोल दी। यों लगा जैसे कोई बालक बिलख रहा हो। जागने पर याद आया कि यह उसका कुत्ता था जिसे वह रात की कलह में भीतर लाना भूल गया था।

वह शीघ्र उठा और गोल कमरे का द्वार खोलकर बाहर बरामदे में पहुँचा। एक कोने में खड़ा हुआ कुत्ता ठण्ड और बरसात से अकड़ा जा रहा था। विनोद ने झट उसे अपनी बाँहों में उठा लिया। उसका शरीर भीगने से इतना ठंडा हो रहा था मानो वह कोई बर्फ का ढेर हो।

बर्षा बन्द हो चुकी थी, परन्तु आकाश अभी तक बादलों की चादर ओढ़े हुए था। हवा के प्रचंड झोंके बादलों की सील को वातावरण में बिखेर रहे थे। कण-कण हिम के समान शीतल था। बरसाती ठंड धमनियों में प्रवाहित गर्म रक्त को ठंडा कर रही थी। विनोद कुत्ते को गोद में उठाकर भीतर ले आया और किवाड़ों को बन्द कर दिया, जिससे ठंड भीतर न आ सके। उसने झट से कुत्ते के शरीर को पोंछकर उसे कम्बल में लपेट दिया। गर्मी पहुँचने से कुत्ते की जान मं  जान आई और वह प्यार से अपने स्वामी का मुँह चूमने लगा। विनोद ने उसे और अपने निकट कर लिया और उसके शरीर की गर्मी का अनुभव करने लगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय