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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


वह मौन इसी असमंजस में खड़ा था कि विनोद बांध के फाटक तक जा पहुँचा। रमन उसके पीछे भागा, परन्तु उसने शीघ्र बढ़कर चबूतरे के जंगलों को भीतर से ताला लगा दिया कि कोई भीतर न जा सके।

रमन चिल्लाकर विनोद को इस काम से रोकने का प्रयत्न करने लगा, परन्तु विनोद तेज़ी से बांध की दीवार पर पानी के बहाव को रोकने वाले उन फ़ौलादी फाटकों तक जा पहुँचा जिन्हें उठा देने से हौज़ का सारा पानी नीचे घाटी में निकल जाता।

लोहे की मोटी जंजीर को पकड़कर विनोद हौज़ में उतरने लगा और रमन चिल्लाकर लोगों को सहायता के लिए इकट्ठा करने का प्रयत्न करने लगा। घाटी में कोई व्यक्ति दिखाई न देता था और यदि कोई होता भी तो पानी के इस शोर में उसकी आवाज़ का दूर तक पहुँचना असम्भव था।

वह दीवार के जंगले पर झुककर नीचे देखने लगा-विनोद हौज़ में जा चुका था। उसका आधा शरीर पानी में था और वह पूरी शक्ति से चर्खी घुमा रहा था। उसने चार में से दो लोहे के फाटक ऊपर उठते हुए देखे और रुका हुआ पानी घाटी में बहने लगा तीसरा फाटक खुलने पर पानी की उछालें बहुत ऊँची उठने लगीं और वह विनोद को न देख सका। रमन से इससे अधिक कुछ न देख गया।

थपेड़े खाता हुआ पानी प्रतिक्षण तेज़ होता चला गया और हौज़ में इकट्ठा हुआ पानी नीचे घाटी में बह गया। लोहे और सीमेंट की नई दीवार वैसी ही खड़ी रही।

शाम तक पानी का बहाव घट गया। बस्ती में इस दुर्घटना पर हाहाकार मच गया। रमन, माधवी और कामिनी घटनास्थल पर पहुँचकर घाटी की खोज करवा रहे थे। विनोद की पिस्तौल और तालियों का गुच्छा एक चटटान से रुके हुए मिल गए। परन्तु उसके शरीर का कोई चिह्न न मिला।

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