ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'हाँ।'
'धन्यवाद!' यह कहकर रमन मुँह मोड़कर बाहर जाने लगा। वह यह स्पष्ट करना चाहता था कि उसकी बातों का उसके मन पर रत्ती-भर असर नहीं हुआ। विनोद ने उसे एक बार जाते हुए फिर पुकारा, परन्तु अब के रमन ने मुड़कर भी न देखा।
अचानक उसी समय बांध के साथ वाली घाटी में शोर उठा जैसे पानी के बहाव में बड़ी चट्टान लुढ़क रही हो। विनोद उधर देखने लगा। इस शोर ने रमन के पांव भी रोक दिए। ऊपर से कुछ चौकीदारों को भागते हुए आते देखकर विनोद शोर का कारण जानने के लिऐ उनकी ओर भागा। पता चला कि नदी में अचानक बाढ़ आ जाने से घाटी का अस्थाई बांध टूट गया है। रमन भी वहीं जा पहुँचा और दोनों चौकीदार को साथ लेकर नये बनाए हुए बांध के पास आ खड़े हुए। नदी का किनारा कट चुका था और अस्थाई बांध को तोड़ता हुआ पानी घाटी में प्रवेश कर रहा था। पानी का बहाव प्रतिक्षण बढ़ रहा था और देखते-ही-देखते वहां जल-ही-जल हो गया था।
नया बांध अभी कच्चा था। सीमेंट अभी पूरा जम न पाया था और भय था कि प्रवाह की यह गति उसे बहा ले जाएगी और इतने परिश्रम पर पानी फिर जाएगा। अब क्या किया जाए? समय सोच-विचार का न था, परन्तु किसी उपाय की आवश्यकता थी।
विनोद परिस्थिति को समझकर झट दफ्तर की ओर भागा और बांध में लगे हुए फौलादी फाटक की कुँजियां लेकर बांध की ओर बढ़ा। रमन ने घबराहट में उससे पूछा, अब क्या होगा?'
'हमें बांध में से ये लोहे के फाटक उठा लेने चाहिए ताकि पानी यहां घाटी में एकत्रित न हो सके।'
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