ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
|
8 पाठकों को प्रिय 429 पाठक हैं |
'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'रमन भी वहाँ था?'
'हाँ!'
'उसने क्या कहा?'
'कहता था, यदि उसे अपने पिता का पता चल जाय तो वह उससे अपनी माँ से किए गए निर्दय व्यवहार का बदला लेगा।'
'उसका नाम?'
'नाम उसने नहीं बताया। रमन ने बहुत ज़ोर दिया, परन्तु उसका नाम-पता बताने में उसने इन्कार कर दिया।
विनोद ने जितने भी प्रश्न किए, माधवी ने उसका पहले-सा निश्चित उत्तर दिया। इस बातचीत से वह ठीक प्रकार जाँच न सका कि माधवी यह सब भेद जान चुकी है या नहीं। वह इस बात पर अधिक वाद-विवाद भी न करना चाहता था, इसलिए वह उठकर अपने कमरे में चला गया। माधवी उसके मुख के हर परिवर्तन को ध्यानपूर्वक निहारने लगी। उसकी बातों ने विनोद के मन में हलचल उत्पन्न कर दी थी।
खाने की मेज़ पर दोनों साथ-साथ बैठे परन्तु दोनों मे से किसी ने भी एक शब्द न कहा। रात की सोते समय माधवी ने कई बार कनखियों से विनोद की ओर देखा। उसकी आँखों में नींद न थी और वह अपनी उलझनों में खोया निरन्तर छत की ओर देख रहा था।
माधवी स्वयं भी मानसिक असमंजस में लेटी अपनी पीड़ा को रात के पर्दे में छिपाने का प्रयत्न कर रही थी। भाग्य ने एकाएक उसके जीवन में कितना बड़ा अभाव उत्पन्न कर दिया था!
|