ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'मुझे समय पर यहाँ पहुँचाने का।'
'ओह ठहरो। मैं भी चलती हूँ।'
'कहाँ?'
'तुम्हारे घर। क्यों, घर न ले चलोगे?'
'क्यों नहीं, परन्तु...'
'अभी नहीं? माँ से डरते हो-यही बात है न?'
'अब मैं आपको कैसे समझाऊँ? आप मेरे साथ इस समय मत आइए, फिर किसी दिन अचानक चली आइएगा।'
माधवी मुस्कराकर उसकी ओर देखने लगी कि कहीं वह यह न समझ ले कि वह उससे रुष्ट हो गई। उसने रमन की बात का कोई उत्तर न दिया और गाड़ी स्टार्ट कर दी।
कुछ दूर चलकर उसने गाड़ी रोकी और उस बैग को देखने लगी जो रमन गाड़ी में ही भूल गया था। बैग में उसके ज़रूरी कागज़ और नक्शे थे। उसने वह बैग उठाया और रमन के घर की ओर हो ली। उसने सोचा, कामिनी पर वह यह बात स्पष्ट न करेगी कि रमन उसके यहाँ गया था और इसी बहाने कामिनी से भेंट भी हो जाएगी। वह बेधड़क रमन के बरामदे तक जा पहुँची।
भीतर शान्ति थी। दबे पाँव धीरे-धीरे वह गोल कमरे तक जा पहुँची। वहाँ भी कोई न था। साथ वाले कमरे का पर्दा हटाकर उसने भीतर प्रवेश किया। सामने रमन अपनी माँ को जगा रहा था जो उसकी प्रतीक्षा करते-करते वहीं सो गई थी।
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