ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'और माँ!' रमन अलग होते हुए बोला।
'क्या? यह क्या है?'
'साड़ी।'
'किसके लिए?' कामिनी ने उँगलियों से साड़ी को स्पर्श करते हुए पूछा।
'माधवी आण्टी के लिए।'
'रमन!' वह सहसा गम्भीर होकर अपने बेटे को आश्चर्य से देखते हुए बोली।
'हाँ माँ, यह गर्म कोट का कपड़ा मिस्टर मुखर्जी के लिए।'
कामिनी चुप रही, परन्तु उसके मौन ने रमन को बता दिया कि उसकी ये बातें उसकी माँ को अच्छी नहीं लगीं।
'क्यों माँ, तुम्हें अच्छा नहीं लगा?'
'क्या?'
'उन दोनों के लिए ये उपहार...'
'रमन!'
'हाँ, माँ!'
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