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ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'रमन की माँ से मिलने?'

'वह आई थी क्या?'

'नहीं तो! वह किसी के यहाँ आना-जाना पसन्द नहीं करती।

'मैं भी पराई स्त्रियों के घर आने-जाने को अच्छा नहीं समझता।

विनोद के इस उत्तर ने माधवी को निरुत्तर कर दिया। उसी समय बाहर के द्वार से रमन ने प्रवेश किया। माधवी झट विनोद से अलग हो गई और उलझे हुए कपड़ों को ठीक करते हुए उसकी ओर देखने लगी। रमन के और पास आने पर दोनों एक साथ बोले-'इतने दिन कहाँ रहे?'

'योंही आ न सका। माँ क्या आई कि कुछ बँध-सा गया।'

'वह कैसे?' विनोद ने पूछा।

'काम से लौटता हूँ तो कहीं जाने नहीं देती। कहीं साथ चलने को कहता हूँ तो इन्कार कर देती हैं। अब आप ही कहिए, कैसे आ सकता हूँ?'

'अच्छा करती हैं। माधवी बनते हुए बोली, 'अभी अनुभव नहीं...जवानी में कहीं लड़खड़ा न जाओ!'

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