ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'मैं क्या जानूं? मैं तो उसकी दृष्टि को सहन न करके नीचे देखने लगी।'
विनोद चुप हो गया और माधवी उसके लिए चाय बनाने लगी। चाय का प्याला उसके हाथ से लेते हुए विनोद ने प्रश्न किया-'माधवी!'
'जी!'
'जीवन में कभी कोई उलझन आ खड़ी हो तो?'
'कैसी उलझन?'
'हमारे शांतिमय जीवन-मार्ग पर...तो क्या घबरा जाओगी?'
'नहीं तो!...परन्तु क्या?'
'तुम जानती हो, देश मेरी परीक्षा ले रहा है। यदि यह बाँध तैयार न हुआ तो...'
'यह आप कैसी बात कर रहे हैं? बाँध अवश्य तैयार होगा!' माधवी ने उसके विश्वास को दृढ़ करते हुए कहा। विनोद ने उसे अपने और समीप खींच लिया और आलिंगन में लेते हुए बोला- 'सच? यदि हर कठिनाई में तुमने मेरा साथ दिया तो यह काम अवश्य पूर्ण होगा!'
माधवी ने कोई उत्तर न दिया और उसकी मानसिक उलझनों को समझने का प्रयत्न करते हुए उसके बालों से खेलने लगी और कुछ क्षण चुप रहकर धीमे स्वर में बोली, 'आप न जाइएगा?'
'कहां?'
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