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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


36


दिन बीतते गए। विनोद का स्वास्थ्य पहले से बहुत सुधर चुका था। अब वह गाड़ी में बैठकर उत्तरी घाटी में पहुँच जाता और अपनी आज्ञा से हर काम ठीक ढंग से करवाता। आस-पास की बस्तियों के लोग मीलों चलकर वहाँ आते और विनोद उन्हें अच्छी मज़दूरी देकर काम पर लगाता। काम सुगमता से चल रहा था और वहाँ के लोग भी प्रसन्न थे। योजना की पूर्ति उनकी घाटियों में एक महान् परिवर्तन ले आएगी, उनके जीवन पलट जाएँगे। उनकी आर्थिक दशा सुधर जाएगी। वहाँ का हर व्यक्ति तन-मन से मशीन की भाँति काम में जुट गया।

उत्तरी घाटी का यह ऊपरी बाँध असली डैम बनाने से पूर्व पानी के ज़ोर को कम करने के लिए बनाया जा रहा था। इस बाँध से नदी के पानी का ज़ोर घट जाएगा और वह आस-पास की घाटियों में फैल जाएगा। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक साथ हज़ारों हाथ और हज़ारों मस्तिष्क कार्य पर जुट गए।

विनोद, रमन और माधवी भी आराम बिसराकर इस स्वप्न को वास्तविकता का रूप देने में जुटे थे। सफलता का झण्डा प्रतिदिन ऊँचा उठ रहा था। इसे देखकर उसका मन प्रसन्नता से झूम उठता और हर थकान के बाद नव-साहस उत्पन्न होता।

विनोद और रमन एक-दूसरे के और निकट हो गए और माधवी भी उनके रंग में रच गई। वह स्नेह द्वारा उसे अपना ही पुत्र समझने लगी। बातों-बातों में जब कभी रमन अपनी माँ का वर्णन ले बैठता तो विनोद के मन में पीड़ा उठती और वह मौन हो जाता। उसका अतीत साँप बनकर उसकी धमनियों में विष उतार देता और वह अकेला लेटा उस ज्वाला से सुलगता और तड़पता।

एक शाम रमन ने उसे बताया कि उसे सरकारी कोठी मिल गई है तो वे दोनों यह सुनकर उदास हो गए। वे न चाहते थे कि रमन उन्हें छोड़कर अलग रहे।

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