ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'नहीं तो! सोच रहा था कि माँ को छोड़ना कितना कठिन काम है। अपने लिए तो हर कोई जीता है; वास्तविक जीवन माँ के लिए जीना ही है।'
'इसीलिए तो उसको छोड़कर आपके पास आ गया हूँ कि धरती माता की सेवा कर सकूँ। जब तक माता का आशीर्वाद और आपका सहारा संग है, दुनिया की कोई शक्ति हमें अपने निश्चयों से नहीं हटा सकती।'
दूसरे दिन से सरकारी काम आरम्भ हो गया। विनोद जाने के योग्य न था। वह घर पर ही नक्शे बनाता और रमन को काम पर सावधानी बरतने का आदेश देता। काम के पश्चात् जब कभी वह अत्यधिक थक जाता और पहले अस्वस्थ हो जाता, तो माधवी और रमन उसके पास बैठकर घण्टों उसकी सेवा करते और मन बहलाते।
इन दोनों को अपने निकट देखकर वह एक हार्दिक प्रसन्नता अनुभव करता, परन्तु उस मधुर पीड़ा का आनन्द उन पर स्पष्ट न होने देता। वह जानता था कि यह रहस्य खुलते ही उनके जीवन का ढंग बदल जाएगा।
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