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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'वह हिन्दुस्तान के प्रसिद्ध इंजीनियर थे। पिछले युद्ध में बर्मा की सीमा से लौटकर न आए।'

'इसीलिए उसने तुम्हें इंजीनियर बनाया है?'

'हाँ, मिस्टर मुखर्जी, यह आज उसी के आँसुओं का मूल्य है कि मैं इस पंक्ति में खड़ा हूँ-यहाँ तक पहुँच पाया हूँ। आप अनुमान नहीं लगा सकते कि उसने कितने कष्ट झेले, परन्तु उसकी दृढ़ता और साहस अटल रहा।'

'तब तो तुम उसकी बड़ी सेवा करते होगे?' माधवी ने विनोद के मौन को देखते हुए कहा।

'जी, इस दुनिया में मुझे माँ से बढ़कर कुछ भी नहीं, और सच पूछिए तो कलेजे पर पत्थर बाँधकर आया हूँ।'

'वह क्यों?' विनोद घबराकर चौंक पड़ा।

'वह मुझे यहाँ अकेला न आने देती थी; कहती थी, मैं भी साथ चलूँगी। अब आप ही कहिए, इन जंगलों में उसे कहाँ ले जाऊँ?'

'हमारे यहाँ ले आते।' माधवी ने सहानुभूति जताते हुए कहा।

'वह तो ठीक है, परन्तु वह किसी के यहाँ नहीं रही। मैंने कहा फिर कभी ले चलूँगा।'

दोनों ने देखा कि विनोद चुप बैठा स्वयं में खोया कुछ सोच रहा था। चन्द क्षण के मौन के बाद माधवी ने पूछा-'आप चुप क्यों हैं?'

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