ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'शायद आपके घर वालों को उनका आना न भाया हो?'
'यह आप क्या कह रही हैं? भला हमको उनका आना क्यों न भाता? और घर में दूसरा है ही कौन? एक माँ है जो इस दुर्घटना से इतनी मलिन है कि अब तक उसके मुख से दुख झलकता है। कहती थी, बरसों पश्चात् कोई अतिथि हमारे घर आया और अपशकुनी हुई।'
गाड़ी डाकबंगले के पास से गुज़री तो रमन ने रुकने को कहा।
माधवी ने उसके मुख पर तीव्र दृष्टि डालते हुए पूछा- 'क्यों?'
'मुझे यहीं उतरना है।'
'परन्तु मुझे नहीं...आपको हमारे साथ चलकर हमारे यहाँ ठहरना होगा।'
'आप इतना कष्ट...'
'यह मेरी प्रार्थना नहीं, उनकी आज्ञा है।'
माधवी ने दृढ़ता से उत्तर दिया और गाड़ी की गति बढ़ा दी। गाड़ी चाय के लहलहाते खेतों से गुज़रने लगी। घाटी की संगीत-पूर्ण वातावरण रमन के शहरी शोरगुल से भरपूर मस्तिष्क को शान्ति पहुँचाने लगा। सरसराती हुई पवन में धीमी-सी बांसुरी की धुन आ रही थी!
गाड़ी कोठी के फाटक से भीतर आई और दोनों के मन हर्ष से नाच उठे। रमन उतरते ही भीतर वाले कमरे की ओर लपका और माधवी नौकर को बुलाकर सामान उतरवाने लगी।
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